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लोकशाही के ४ स्तम्भ। चुनाव के समय किसकी जवाबदारी ज्यादा?
मतदारोंको सही विश्लेषण/analysis करना कैसे सिखाये। ५ साल के काल मे बहुत सारी विषय/चीजे बनती है या बिगड़ती है।
क्या यह सबका विश्लेषण आम इंसान कर सकता है ? इस ५ साल के मुकाबले इसके पहले वाले ५ साल कैसे थे ?
लोगों को परसो क्या खाया था यह याद नही रहता। जब खाजगी कर्मचारी साल के अंत मे KRA भरता तब उसे उसके खुदके कई पॉइंट याद नही आते;
बाकी लोगोंका क्या कहना ? विश्लेषण किन पॉईंट पर/आधार पर होनी चाहिए ?
इतने सारे बिसनेस मास्टर्स डिंग मार रहे है।
क्या इन लोगोंको लोकशाही के आधारस्तंभ वाली ऑफिसेस मे काम नही मिलता?
क्या संक्षिप्तमे पर्टियोंका १० पॉइंट का रिव्यू मेकैनिसम् आम इंसान के लिए नही बना सकते ??
क्या इससे नेताओं के परफॉर्मन्स मे वृध्दि होंगी या नही --इसमे नही सोचना है। बल्कि मतदारोंको निर्णय लेने मे सहजता लानी है।
चैनेल या अखबार फुकटमे नही देखने मिलते। और उपर से भरमार जाहिरात फ्री मे। कोई काम नही कर रहा? सब अपनी अपनी जमा रहे?
मतदारोंको याद दिलाना/अवगत करना/गुमराह करते हुए जानकारी देना/भविष्यवाणी करना.. यह सब लाभार्थी कर रहे है।
देश या राज्य कर्जमुक्त कैसे होगा इस पर कोई रोडमॅप नही.
सरकारी खजाने मे पैसा कहासे आयेगा ये बता नही सकते और फ्री मे ये वो देंगे ऐसा धडल्ले से फेके जा रहा है .

by SaveMe
05-05-2024
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क्या शिकारी शूरवीर होते थे ?
वैसे तो गुजरेहुए लोँगोपर कुछ कहना नही चाहिए। पर क्या करे उनके उदाहरण दिये जाते है।
१०-२० प्रशिक्षित झुँड बनाकर जानवर पर टूट पड़े तो उसमे कोई शुरता नही। वह भी स्वयम् चलित शास्त्रों के साथ ! या छिपकर दुरसे बाण चलाकर ! Level playing field तो बिल्कुल नही।
पानी पीते हुये जानवर पर हमला करना, घंटो छिपकर बैठना इसमे कैसा शौर्य...
जो हिंस्र नही है उनकी भी शिकार करते थे।
आम इंसानका हिंस्रक पशुओसे डरना स्वभाविक है। और इन्ही पर इंप्रेशन जमाते रहे।
यूद्ध तो हमेशा होते नही तब क्या करे? इंप्रेशन कैसे जमाये? शायद इसीलिये शिकार करते थे।
मनोरंजन कहते तो कोई बात नही, पर बहाद्दूर तो बिलकुल नही.
अंततः शिकारी stuntmen थे।

by Sherdil
01 May 24
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